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कविता

भूल

महेश वर्मा


आम बात है प्रेम में शब्दों का भूल जाना
यहीं हम सीखते हैं विरामचिह्नों का महत्व, सुनते हुए
चुप की चीखती आवाज़

हमेशा हाथ लगता कोई ग़लत शब्द
आतुर उँगलियों से टटोलते,
शब्दों के पुराने झोले को - प्रेम में

भूल जाते हम पुरातन शब्द और उतरन की मुद्राएँ
स्मृतियों के झुटपुटे में ऐसे ही रख छोड़ते, अस्तव्यस्त-सी जगह पर
अटपटी भाषा और भंगिमाएँ प्रेम के समकाल की

वाक्य विन्यास और
शब्दों के सुंदर चित्र भूल आए हम संसार की पुरानी मेज़ पर
और
भूल आये कोई थरथराता पुल - धूप में

व्यक्त भाषा के अंतरालों में बैठकर,
हँसते रहते प्रेम में भूले शब्द -
अवश भाषा की पगडंडियों पर जो उग आते
अनचीन्हे जंगली फूल -
इन्हें दोबारा नहीं देख पाएँगे।

 


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